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मधु संधु जी की कवितायें


मीडिया गाथा
जुड़वां भाइयों की तरह
मेरी एल. सी. डी. के सभी चैनल
ज़ी., ए. बी. पी., इंडिया टी. वी. टाइम न्यूज़ वगैरह
एक ही भाषा में बोलते हैं
एक जैसे समाचारी रहस्य खोलते हैं।

जानदार आवाज़
दमदार शब्दावली
युवा और रौबदार व्यक्तित्व
असरदार हाव- भाव
विलक्षण सौंदर्य
चमचमाती लेटेस्ट वेषभूषा
आवेग, आवेश और गति।

पत्रकारी अंदाज में
एक सप्ताह गाते हैं
तीन तलाक
गौरखपुर में बच्चों की मौत
बिहार की बाढ़
रेल दुर्धटना
बलात्कारी बाबा के गुंडों द्वारा हाईजैक हुआ शहर
डोकलम में ड्रेगन
किम जोंग का हाइड्रोजन बॉम्ब।

और अगले सप्ताह
हर ओर गूजता लहराता है
गणपति बप्पा
मोदी चीन में, म्यामार में
पंचशील
कश्मीर में पत्थरबाजी
मुंबई की टाडा कोर्ट का
बम धमाकों पर आया
24 साल बाद का फैसला ।

हर चैनल पर एक ही तस्वीर
हर घंटे बाद खबरों की वही कैसेट
तब तक
जब तक
कोई बड़ी त्रासदी ब्रेकिंग न्यूज़ बन
नये खबरी उत्सव का उदघाटन नहीं करती ।
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अपनापन
एक रिश्ता है अपनेपन का
बाज़ार जाता हूँ खरीददारी के लिए
सब पूर्वनिर्धारित ही रहता है
राशनदवाईयांसब्जियाँफल
जूतेमौजेकपड़े या गारमेंट
या दैनिक जरूरत की दूसरी वस्तुएं।
वैविध्य के लिए
एक से दो हो सकते हैं स्टोर/ दुकानें
पर दस नहीं।
यहाँ तक कि मोबाइल का बिल भी
एक ही दूकान से चुकता करता हूँ
गाड़ी में पेट्रोल एक ही पेट्रोल पम्प से भरवाता हूँ।
क्यों ?
जानते हो ?
एक अहसास कि वो मुझे पहचानते हैं
मेरे अपने हैं
उस जमाने से
जब
न कमर कमान थी
न आँखों पर चश्मा था
न घुटनों में दर्द था
न बालों में सफेदी
न चेहरे पर झुरियाँ
न चाल में मेंढकी का असर
हर आँख में अब अपनेपन की तलाश रहती है।

पितृ सत्ताक के षड्यंत्र
पितृ सत्ताक के षड्यंत्र तो
जन्मघुट्टी में पिला दिए जाते हैं मुझे ।
मैंने की हैं भैया दूज को
तुम्हारे लिए
ढेरों मंगल कामनाएं।
पर्व से शुद्ध मन से रखे हैं
सोमवार के उपवास
तुम्हारे लिए ,
कार्तिक मास के
कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को
करवा चौथ के निर्जला व्रत ।
मैंने किए हैं
पुत्र के लिए शुक्लपक्ष के
आठ मंगलवारों को जिउतिया व्रत,
पौष मास में
पुत्रदा एकादशी व्रत
या
बच्छदुआ पर्व
या
अहोई अष्टमी ।
दुआएं क्या सिर्फ तुम्हें चाहिए
अमरता की
स्वास्थ्य की
ऊंचाइयों की
सातवें आसमान की ।
क्या मेरा लिए कोई
व्रत -त्योहारउत्सव -पर्व
नहीं
कोई बहन दूज,
कोई एकादशीअष्टमीदुआ
की जरूरत नहीं
मुझे लिखना है एक नया धर्म शास्त्र
बहन दूज का त्योहार
मातृ पूजन का उत्सव
पत्नीव्रत का पर्व
पुत्रीकांक्षा कां उपवास
पर
पता नहीं कब ?


मुझे पिता बनना है

बैक ग्राउंड म्यूजिक की तरह
मन की परतों में निरंतर बजता है
एक उद्घोष
कि मुझे पिता बनना है-
स्पष्टवादीसाहसी और निर्भीक
कर्त्ता होने का सुख भोगना है
अपना साम्राज्य फैलाना है |
माँ बहुत अच्छी है
उसका धैर्य
ज़्यादतियों को झेलने का सहज भाव
उसकी सहनशीलतालगाव
असहाय मजबूरी में लिपटे त्याग
मेरा आदर्श नहीं बन सकते |
पिता की गरिमा और आत्मगौरव
संचालन सुख और वीतराग
मुझे किसी विकल्प में नही डालते,
मैंने नंगी आँखों से जीवन देखा है
बिना किसी पूर्वाग्रह का चश्मा लगाए
मै कहती हूँ मुझे पिता बनना है |
परम्परा या आदर्शों का पालन
स्व अस्तित्व का जनाजा
स्वीकार नहीं मुझे
आरोपित उद्देश्यों और ठहराव की जड़ता घेरती है |
अशान्त मानसिकता
रिक्तता अंतहीन शून्य,
खोखलापन
आदर्श और बलिदान के आलौकिक कवच
से छुटकारा पाना है
नए संतुलन खोजने हैं
मुझे पिता बनना है |
सम्बन्धों की मशीनी जिंदगी में
निरीह और हताश
सबको अपनापा देकर
अपने को भुलाने वाली
सजायाफ्ता औरत मुझे नहीं बनना
मुझे पत्नी नहीं
पति का पति बनाना है
भेड़ बकरी नहींसिंह बनना है |
मुझे नहीं घुट घुट के जीना
नहीं पालनी अन्तर्मन में गहरी दहशतें
नहीं झेलने सैलाब
मानसिक उलझनेंद्वंद्व
पिता मै हूँ तुम्हारी आत्मजा
सिर्फ तुम्हारा प्रतिरूप बनना है
मुझे पिता बनना है |



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